उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025: नतीजों में नए संकेत, नए चेहरे और लोकतंत्र का नया अध्याय
उत्तराखंड की वादियों में जहां एक ओर मानसून की रिमझिम फुहारें लोगों को राहत दे रही हैं, वहीं दूसरी ओर पंचायत चुनाव के नतीजे राजनीतिक गर्मी बढ़ा रहे हैं। 2025 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव इस बार न केवल गांव की सरकार चुनने का जरिया बने, बल्कि यह एक सामाजिक बदलाव, राजनीतिक संतुलन और जनभावनाओं का आईना भी साबित हुए।
दो चरणों में संपन्न हुआ मतदान, भारी रहा जनसहयोग
राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव राहुल कुमार गोयल ने जानकारी दी कि राज्य के 12 जिलों के 89 विकासखंडों में 24 और 28 जुलाई को दो चरणों में मतदान संपन्न हुआ। मतदान प्रतिशत 69.16% रहा, जिसमें महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक—74.42%—देखने को मिली, जबकि पुरुषों की भागीदारी 64.23% रही। यह आँकड़े यह साफ करते हैं कि गांवों में महिलाएं अब नेतृत्व की दिशा में और भी अधिक सक्रिय हो रही हैं।
जब डॉक्टर बनी बीडीसी: शिक्षित चेहरे, नई सोच
इस बार का चुनाव कई मायनों में अलग और ऐतिहासिक रहा। द्वाराहाट ब्लॉक से बीडीसी चुनी गईं डॉ. आरती पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। उन्होंने शहर के आराम को छोड़कर गांव की सेवा को अपना ध्येय बनाया और चुनावी मैदान में उतरीं। ग्रामीणों ने उनके सेवा भाव को सराहा और उन्हें क्षेत्र पंचायत सदस्य के रूप में चुना। यह केवल एक जीत नहीं, बल्कि ग्रामीण राजनीति में शिक्षा और दूरदृष्टि के महत्व का प्रमाण है।
कल्पना बनी मुखिया – जब चुनाव में आया रोमांच
रानीखेत के पास गढ़वाली पपोली ग्राम पंचायत में एक ऐसा दिलचस्प वाकया सामने आया जिसने लोकतंत्र की खूबसूरती को उजागर किया। प्रधान पद के दो प्रत्याशियों को बराबर मत मिलने पर निर्णय लाटरी के ज़रिए लिया गया। इसमें कल्पना बिष्ट विजयी रहीं। ऐसी पारदर्शिता और संयोग लोकतंत्र की असल ताकत को दर्शाते हैं।
भाजपा और कांग्रेस के लिए कड़ा इम्तिहान
अल्मोड़ा ज़िले के भैसियाछाना ब्लॉक में भाजपा को करारा झटका लगा। अनुसूचित जाति मोर्चा के मंडल अध्यक्ष संतोष कुमार राम और उनकी पत्नी पूजा देवी दोनों को हार का सामना करना पड़ा। यह चुनावी नतीजे राजनीतिक संगठनों के लिए यह चेतावनी हैं कि अब जनता पार्टी नहीं, प्रत्याशी के काम और भरोसे को आधार मानकर वोट देती है।
लमगड़ा ब्लॉक: बदलाव की बयार
भाजपा के संभावित ब्लॉक प्रमुख विक्रम बगड़वाल को लमगड़ा ब्लॉक की टिकर सीट से हार का सामना करना पड़ा। जनता ने विकास के नाम पर वोट दिए और देवेंद्र बिष्ट को चुना। यह चुनाव नतीजा यह बताता है कि जनता अब चेहरों से ज़्यादा, जनहित के कामों को महत्व दे रही है।
महिला नेतृत्व की ओर बढ़ता कदम
अल्मोड़ा ताकुला की निवर्तमान ब्लॉक प्रमुख और कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या की बहू मिनाक्षी आर्या ने फिर से जीत दर्ज कर यह साबित किया कि जनता को उनका कार्यकाल पसंद आया है। उनके समर्थकों ने जीत का ज़ोरदार जश्न मनाया। अब वह फिर ब्लॉक प्रमुख बनने की दौड़ में सबसे मजबूत उम्मीदवार बन गई हैं।
पड़ोसी बने जनप्रतिनिधि: लोकतंत्र की नई तस्वीर
रुद्रपुर के महाराजपुर गांव में एक दिलचस्प नज़ारा देखने को मिला। जहां एक ओर संतलाल ठुकराल की पुत्रवधू रीता रानी बीडीसी बनीं, वहीं उनके पड़ोसी शुभम की पत्नी नेहा पुजारा ग्राम प्रधान चुनी गईं। दोनों महिलाओं ने चुनाव प्रचार में एक-दूसरे के समर्थन में भी काम किया। अब गांव की कमान पड़ोसी महिलाओं के हाथों में है।
रामनगर में टूटी परिवारिक परंपरा
रामनगर के चुकुम गांव में जसीराम परिवार पिछले 20 वर्षों से ग्राम प्रधान बना रहा। इस बार राकेश कुमार चुनाव लड़े जो जसीराम के बेटे हैं। लेकिन गांव के ही सौरभ कुमार ने उन्हें कड़ी टक्कर देकर जीत हासिल की और इस परिवार की जीत की श्रृंखला को तोड़ दिया। यह जीत बताती है कि लोकतंत्र अब वंशवाद से आगे निकल चुका है।
हैट्रिक जीत: जब जनता ने बार-बार जताया भरोसा
रुद्रपुर की आनंदपुर ग्राम पंचायत से वीरेंद्र यादव ने तीसरी बार ग्राम प्रधान बनकर हैट्रिक पूरी की। 2014 में खुद, 2019 में पत्नी और अब 2025 में एक बार फिर से वह खुद विजयी हुए हैं। जनता के विश्वास को वह गांव के विकास में बदलने की बात कर रहे हैं।
बेटा हारा, बहू जीती: राजनीति के नए समीकरण
अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे ब्लॉक में विधायक महेश जीना के बेटे करन जीना हार गए, जबकि रामनगर से विधायक दीवान सिंह बिष्ट की बहू श्वेता बिष्ट दूसरी बार चुनाव जीत गईं। यह दिखाता है कि सिर्फ परिवारिक नाम नहीं, बल्कि व्यक्तिगत छवि और काम का महत्व ज़्यादा हो गया है।
निर्दलीय प्रत्याशियों की बढ़ती ताकत
इस बार कई निर्दलीय प्रत्याशियों ने राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को करारी शिकस्त दी। रुद्रप्रयाग के ल्वारा वार्ड से सुबोध बगवाड़ी, पिथौरागढ़ के टंगसा से संतोष बिष्ट, और किलोंडी से मीनादेवी जैसे नाम सामने आए हैं जिन्होंने निर्दलीय रहते हुए जनता का दिल जीता। यह भी साबित करता है कि सशक्त लोकतंत्र में पार्टी से ज़्यादा व्यक्ति विशेष की भूमिका अहम हो गई है।
जब जीत पर भी छाया विवाद
बागेश्वर में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी सरोज आर्या को प्रमाणपत्र मिलने में देरी पर कांग्रेसियों ने विरोध प्रदर्शन किया। वे जिला प्रशासन पर सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन पर उतरे। बाद में प्रमाणपत्र मिलने पर मामला शांत हुआ। इससे यह साफ होता है कि पारदर्शिता के मामले में अभी सुधार की ज़रूरत है।
महिला आरक्षण और सामाजिक समरसता
इस बार महिला प्रत्याशियों ने जिस तरह से जीत दर्ज की, वह महिला सशक्तिकरण का प्रमाण है। साथ ही, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग से आने वाले उम्मीदवारों को मिली सफलता सामाजिक समरसता की ओर बढ़ते कदम हैं। चाहे कल्पना बिष्ट हों या प्रियंका देवी, चाहे डूंगरलेख की प्रिया चम्याल हों या हरिद्वार की मोनिका — सभी ने यह साबित किया कि महिलाएं अब नेतृत्व की भूमिका निभाने को तैयार हैं।
बदलता उत्तराखंड, बदलती पंचायत
उत्तराखंड के पंचायत चुनाव 2025 केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं रहे। यह चुनाव एक सामाजिक-सांस्कृतिक जागरूकता का संकेत भी रहे। शिक्षा, सेवा भावना, पारदर्शिता और व्यक्तिगत छवि जैसे पहलुओं ने मतदाताओं को प्रभावित किया।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह चुनाव भविष्य की राजनीति का ट्रेलर है — जहां जाति, पार्टी और रिश्तों से ऊपर उठकर काम, नीयत और जनसेवा को महत्व मिलेगा।
उत्तराखंड के ये पंचायत चुनाव देशभर के अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा हैं। जब गाँव की जनता शिक्षित, समर्पित और सेवा भाव रखने वाले जनप्रतिनिधियों को चुनती है, तो लोकतंत्र की असली जीत होती है। पंचायत चुनाव किसी सरकार का छोटा संस्करण नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ हैं – और इस बार उत्तराखंड की जनता ने इन जड़ों को और भी मजबूत किया है।