Mandala Murders: A Dark Mythical Thriller

परिचय: लोककथाओं से आधुनिक थ्रिलर तक

प्रेत साधना, काला जादू, तंत्र-मंत्र — चाहे आप इन पर विश्वास रखते हों या नहीं, ये हमारी लोककथाओं का अटूट हिस्सा हैं। ऐसे रहस्य जब सामाजिक‑राजनीतिक उठापटक और क्राइम की गुत्थियों से जुड़ते हैं, तब एक अनूठी कहानी जन्म लेती है। ऐसी ही एक कहानी है “मंडला मर्डर्स”, जिसमें भारतीय लोक विश्वास और आधुनिक सशस्त्र पुलिस-प्रक्रिया का संगम है।

यह सीरीज उत्तर प्रदेश में बसे काल्पनिक कस्बे चरणदासपुर से शुरू होती है, कहानी 1950 के दशक में एक रहस्यमयी प्राचीन पंथ द्वारा मरे हुए व्यक्ति को पुनर्जीवित करने की कोशिश से जुड़ी है। फिर यह वर्तमान में बेतहाशा सीरियल किलिंग और रहस्यमयी घटनाओं की एक जटिल जाल में बदल जाती है।

1. कहानी की रूपरेखा (प्लॉट सारांश)

1950 का फ्लैशबैक: आरंभिक प्रयास

1950 के दशक में चरणदासपुर की वैरुणा जंगल के पास एक समूह, जिसे आयास्त मंडल कहा जाता है, मृत व्यक्ति को कुछ रहस्यमयी तंत्र द्वारा फिर से जिन्दा करने का प्रयास करता है। इस मंडल की नेता रुक्मिणी देवी होती हैं, जिनके पास एक मशीन होती है—आयास्त यंत्र—जिसमें अंगूठा डालने पर वरदान मिलता है, पर कीमत चुकानी पड़ती है। जैसे‑जैसे गांव वाले उनके कार्यों का विरोध करते हैं, वे प्लान विफल हो जाता है।

वर्तमान (2025): रहस्यमयी सनक

विक्रम सिंह, दिल्ली पुलिस का सस्पेंडेड अफसर, अपने पिता के साथ ट्रेन से अपने बचपन के गांव चरणदासपुर जा रहा है। ट्रेन में एक फोटोग्राफर की मुलाकात होती है—अगले दिन वही प्रेस फोटोग्राफर की धड़‑कटी लाश नदी में मिलती है। इस हत्या से पूरे गांव में दहशत फैल जाती है।

सीआईबी की काबिल ऑफिसर रिया थॉमस (वाणी कपूर) घटना की तह तक पहुंचती है। रिया भी अपने अतीत में झूठे आरोपों और फील्ड से हटाए जाने की पीड़ा से जूझ रही है। जैसे‑जैसे हत्या की गहराई में जाती है, पता चलता है कि गांव में सिर्फ एक ही हत्या नहीं हुई—एक बाहुबली नेता और उसके भाइयों की भी दोनों हाथ काटकर हत्या की गई है।

गुप्त समाज का खुलासा: आयास्त मंडल

जांच के दौरान रिया और विक्रम यह अंदाजा लगाते हैं कि ये हत्या किसी साधारण क्राइम की नहीं, बल्कि एक पंथ की पुनर्जीवित योजना की कड़ी हैं। आयास्त मंडल फिर सक्रिय हो चुका है और उसी विधि से मानव बलिदान कर एक अद्भुत सत्ता — यास्त— का निर्माण करना चाहते हैं।

मुख्य संदेह अनन्या भारद्वाज (सुरवीन चावला) पर जाता है, जो एक प्रभावशाली नेता होने के साथ रुक्मिणी की पोती भी है। धीरे‑धीरे परिवार के अतीत की परतें खुलने लगती हैं, जिसमें विक्रम और रिया दोनों जुड़े होते हैं।

क्लाइमेक्स: यास्त का अंतिम संस्कार

अंत में रिया और विक्रम अंडरग्राउंड चैंबर में पहुंचते हैं, जहां अंतिम यंत्र से यास्त नामक देवता का जन्म होना था। विक्रम “चमत्कारिक बच्चे” के रूप में पूजा जा रहा होता है। लेकिन यहाँ मोड़ आता है: यास्त विक्रम के खून को स्वीकार नहीं करता, क्योंकि विक्रम की माँ ने कभी भविष्य में उसे बचाने की इच्छा की थी—और वह इच्छा विराट शक्ति से काम करती है। रिया समय रहते पहुँच कर अनन्या को मार देती है और पूरे प्रथा को विफल कर देती है।

फिर भी अंत में दर्शक को छोड़ देता है एक खुली सवाल: यंत्र सक्रिय होता दिखता है और पंथ पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ—संकेत देता है कि सीज़न 2 संभव है। (Indiatimes, Wikipedia)


2. मुख्य पात्र और उनकी भूमिका

पात्र भूमिका नोट
रिया थॉमस (वाणी कपूर) CIB अधिकारी, आत्म‑संघर्ष में उलझी पहले OTT में, ठहराव भरी परफॉरमेंस ने सबका ध्यान खींचा (Wikipedia)
विक्रम सिंह (वैभव राज गुप्ता) सस्पेंड पुलिस अफसर, पांव अपने पुराने दर्द में भावनात्मक गहराई, द्वंद्वात्मक किरदार (India Today, FilmiBeat)
अनन्या भारद्वाज (सुरवीन चावला) नेता, पंथ की नई प्रेरक शक्ति ठोस आक्रामकता, कमजोर अंत तक आकर्षक बनीं (ABP Live, The Tribune)
रुक्मिणी देवी (श्रीया पिलगांवकर) पंथ की संस्थापक, अतीत में सक्रिय महत्वपूर्ण फ्लैशबैक किरदार (Wikipedia, FilmiBeat)
राघुबीर यादव, जमील खान, श्रेया पिलगांवकर सपोर्टिंग किरदार राघुबीर का रोल रहस्यमयी, जमील खास तौर समझाने में मददगार (The Tribune, ABP Live)

3. तकनीकी पक्ष और सेटिंग

  • लोकेशन एवं सिनेमेटोग्राफी: चरणदासपुर की धूल‑भरी गलियाँ, वैरुणा की घनी जंगल की दृश्यता ने एक डरावना माहौल तैयार किया। कैमरा आंदोलन और दृश्य छायांकन ने अनुभव को सराहनीय बनाया (India Today, bollywoodhelpline.com)।
  • प्रोडक्शन डिज़ाइन: मंडल की गुप्त सभा स्थल, मशीन के यंत्र और पंथ के दृश्य जीवंत, कभी नोयर फिल्म जैसी थाती हुई लगती है (The Tribune)।
  • बैकग्राउंड स्कोर: सांचित एवं अंकित बल्हारा का संगीत माहौल के अनुरूप है, हालांकि कुछ समीक्षा इसे औसत कहती है (India Today, bollywoodhelpline.com)।

4. समीक्षा एवं आलोचना: क्या मिला और क्या चूका?

अपार सकारात्मक पक्ष:

  • विश्व निर्माण (World‑building): सीरीज की कथानक की साधना, पंथ की तंत्र‑उपकरण और ग्रामीण भारत की छवि ने एक समृद्ध अनुभव दिया (India Today, ABP Live, bollywoodhelpline.com)।
  • प्रदर्शन:
    • वाणी कपूर ने नए रूप में एक ईमानदार किरदार निभाया है, हालांकि आगे और संवेदनशील कर सकती थीं (India Today, FilmiBeat)।
    • वैभव राज गुप्ता ने विक्रम की जटिलताओं को प्रभावी ढंग से निभाया (India Today, FilmiBeat)।
    • सुरवीन चावला की अनन्या किरदार ने शो को जीवंतता दी, उनका स्वभाव और निर्णय‑निर्माण आकर्षक था (FilmiBeat)।

मुख्य आलोचनात्मक बिंदु:

  • कथानक की जटिलता: फ्लैशबैक का अति प्रयोजन, भारी सबप्लॉट्स और चरित्रों की संख्या STORY को उलझा देती है। अगर ध्यान ना रखें, कहानी समझ से बाहर हो सकती है (cinemaexpress.com, bollywoodhelpline.com)।
  • ताल‑मेल की कमी: विज्ञान, पंथ, राजनीति—इन तीनों का मिश्रण कभी स्पष्ट नहीं हो पाता। यंत्र‑विज्ञान का तत्त्व कम विश्वसनीय व कार्टूनिश लगता है (The Tribune, scroll.in)।
  • कार्रवाई और थ्रिल की कमी: कुछ एक्शन सीन कोरियोग्राफ्ड लगे, रियल महसूस नहीं हुए; दुःख, तनाव, भय का सही असर नहीं बना (FilmiBeat, India Today)।

5. थ्रिलर प्रेमियों के लिए क्यों देखें?

  1. लोकमान्यता और आधुनिकता का अद्भुत मेल: भारतीय लोक‑विश्वास की कहानियां, जब आधुनिक पुलिस थ्रिलर से भेंट होती हैं, तब इसका प्रभाव दिलचस्प होता है।
  2. प्रभावशाली वातावरण: छायांकन, सेट‑डिज़ाइन और दृश्य भाषा एक डरावने और रहस्यमयी जगत का निर्माण करती हैं।
  3. किरदारों की पेचीदगी: रिया, विक्रम, अनन्या‑—तीनों का व्यक्तिगत अतीत, मनोवैज्ञानिक संघर्ष दर्शक को बांधे रखते हैं।
  4. सीज़न 2 की संभावनाएँ: अंत में छोड़ा गया अनसुलझा प्रश्न और सक्रिय होता यंत्र दर्शकों की रुचि बनाए रखता है (Indiatimes, time.com)।

6. निष्कर्ष: मंडला मर्डर्स की कुल मिलाकर समीक्षा

यह वेब‑सीरीज “मंडला मर्डर्स” एक आकर्षक और महत्वाकांक्षी प्रयास है—जो भारतीय लोक विश्वास, विज्ञान और क्राइम थ्रिलर का मिश्रण है। दृष्टिगत रूप से यह एक ठोस विश्व बनाती है। पात्रों और उनकी मनोवैज्ञानिक यात्रा में संभावनाएँ हैं। लेकिन अंततः कहानी अपने ही भारीपन में कहीं खो सी जाती है।

अगर आप गहरे, मायावी, किंतु पेचीदा थ्रिलर ढूंढ रहे हैं—तो “मंडला मर्डर्स” एक मौलिक और गतिशील अनुभव दे सकती है। यदि आप जल्दी समझने वाले, सरल और प्रभावी कथानक पसंद करते हैं, या अतिरिक्त सबप्लॉट्स आपको उलझाने लगते हैं, तो यह थोड़ा थकाने वाला हो सकता है।

अंत में पेशा‑प्रशंसा

मंडला मर्डर्स देखने लायक है यदि आप:

  • थ्रिलर, रहस्य, पंथ‑कथा और राजनीति का जटिल मिश्रण पसंद करते हैं।
  • एक बेहतर सिनेमैटिक अनुभव की तलाश में हैं, जिसमें चित्रण, ध्वनि और सेट‑डिजाइन प्रभावी हो।
  • जटिल पात्रों और लंबे समय तक चलने वाले सस्पेंस का आनंद लेते हैं।

यह सीरीज एक बार देखने योग्य है—विशेषकर अगर आप OTT पर कुछ नया, अलग और विचारोत्तेजक देखना चाहते हैं। अंत में कहानी खुद कई प्रश्न छोड़कर जाती है—जिसे सीज़न 2 की प्रत्याशा में देखें तो यह और भी दिलचस्प हो सकती है।

Web citations

  • सीरीज की प्लॉट, पात्र, निर्माताओं और रिलीज़ की जानकारी (Wikipedia, Indiatimes, time.com)
  • समीक्षा एवं आलोचनात्मक टिप्पणियाँ: India Today, Scroll.in, The Tribune, Cinema Express, etc. (The Tribune)

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