Amit Shah Slams Chidambaram on Pahalgam Attack

परिचय: एक दर्दनाक घटना और राजनीतिक जंग का नया मोड़

22 अप्रैल 2025 को जम्मू‑कश्मीर के पहलगाम के बाइसरान वैली में हुई आतंकवादी वारदात ने पूरे देश को झकझोर दिया। 26 आम नागरिक मारे गए और 20 से अधिक घायल हुए—जिनमें अधिकांश भारतीय पर्यटक थे। इस हमले की जिम्मेदारी “दि रेसिस्टेंस फ्रंट” (TRF)—जो पाकिस्तान स्थित लश्कर‑ए‑तैबा की एक छाया संस्था है—ने ली थी (Wikipedia)।

इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा चलाए गए ज़ोरदार जवाबी अभियान “ऑपरेशन सिंदूर” ने नई बहस को जन्म दिया। हाल ही में लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम के बीच इस मामले पर तीखी बहस हुई, जिसमें दोनों पक्षों ने आपस में कई मुद्दों पर सवाल-जवाब किया।

चिदंबरम का तर्क: सरकार से पूछताछ की माँग

कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने मीडिया से बातचीत में सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि सरकार ने आतंकवादियों की पहचान करने, उनका पता लगाने या उन्हें गिरफ्तार करने में पारदर्शिता नहीं बरती। उन्होंने पूछा:

  • “आतंकवादी कहाँ हैं?”
  • “क्यों उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया? पहचान क्यों नहीं हुई?”
  • “वे पाकिस्तानी हैं, ऐसा आरोप क्यों लगाया गया—जब यह साबित नहीं हुआ?”
  • “हो सकता है वे ‘होमग्रोन’ आतंकी हों—भारत के ही नागरिक।”
  • “सरकार नुकसान की बात छुपा रही है, कह रही कि हम पाक को क्लीन चिट दे रहे हैं।”
    (Deccan Chronicle, The Financial Express, The New Indian Express)

उन्होंने कहा कि सरकार टुकड़ों में जानकारी जारी कर रही है—एक अधिकारी X ने कुछ कहा, दूसरे ने कुछ और—लेकिन प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री या विदेश मंत्री द्वारा एक व्यापक बयान नहीं दिया गया। उन्होंने कहा, “संभावना है कि ऑपरेशन सिंदूर में रणनीतिक या तकनीकी त्रुटियां हुई हों, जिन्हें सरकार छुपाना चाहती है।” (Pakistan Today, The Financial Express)

अमित शाह का जवाब: स्पष्ट सबूत और समयरेखा

वरिष्ठ गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में चिदंबरम की टिप्पणियों का पुरजोर तरीके से जवाब दिया, उन्होंने सरकार की कार्यवाही की पूरी जानकारी साझा करते हुए बताया:

  1. तार्किक समयरेखा और साक्ष्य
    • NIA ने वारदात के तुरंत बाद ओजीडब्ल्यू (ओवरग्राउंड वर्कर्स) को गिरफ्तार किया जो आतंकवादियों को आश्रय, भोजन आदि मुहैया करा रहे थे।
    • आतंकियों की लाश श्रीनगर पहुंची—जहां पहचान संभव हुई।
    • कारतूसों की FSL विश्लेषण रिपोर्ट तैयार थी और उनमें मिली राइफलों की जांच भी की गई — जिससे पुष्टि हुई कि वही हथियार इन्हीं आतंकियों द्वारा इस्तेमाल किए गए थे।
      (The Tribune)
  2. **आतंकियों की पहचान**
    अमित शाह ने स्पष्ट किया कि तीन आतंकवादी—सुलेमान, अफ़ग़ानी और जिब्रान—ऑपरेशन महादेव में मारे गए। वे TRF / LeT से जुड़े थे और पाकिस्तानी नागरिक थे। दो आतंकियों के पास पाकिस्तानी वोटर ID मिली थी, और उनके साथ लायी चॉकलेट भी पाकिस्तानी उत्पाद की थीं। इन्हीं सूचनाओं के आधार पर सरकार ने कहा कि उनका संबंध पाकिस्तानी तत्वों से ही था।
    उन्होंने कहा,

    “जब दो के पास पाकिस्तानी वोटर आईडी है, और चॉकलेट भी पाकिस्तानी है, तो सबूत स्पष्ट हैं—पूरी पाकिस्तानी जड़ पर।”
    (The Tribune, The Times of India)

  3. ऑपरेशन महादेव की कार्यवाही
    अमित शाह ने बताया कि भारतीय सेना, CRPF और जम्मू-कश्मीर पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में आतंकवादी ढेर कर दिए गए। वे लोग जो उन्हें खाना मुहैया करा रहे थे, पहले ही हिरासत में थे और आतंकियों की पहचान भी इसी आधार पर की गई थी।
  4. राजनीतिक आरोपों पर पलटवार
    शाह ने पूछा कि चिदंबरम पाकिस्तान को बचाने का उद्देश्य क्या है? उन्होंने कहा,

    “जब वे कहते हैं कि आतंककारी पाक से नहीं आए, तो यह पाकिस्तान को क्लीन चिट देने की कोशिश है।”
    शाह ने ये भी ऐलान किया कि “भारत आतंक के सामने नहीं झुकेगा, हम पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दे चुके हैं”—इस बार ऑपरेशन सिंदूर में आतंकालयों को नष्ट किया गया जो पाकिस्तानी सीमा से लगभग 100 किमी गहराई में थे।
    (The Times of India, The Times of India, The Economic Times)

ऑपरेशन सिंदूर: भारत का सैन्य जवाब

पहलागाम हमले के जवाब में मई 2025 की शुरुआत में “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू हुआ। इस ऑपरेशन को नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र अजात डोवल ने IIT मद्रास के मंच से विस्तार से बताया। उन्होंने कहा:

  • 7 मई की रात 1 बजे, इस ऑपरेशन की शुरुआत हुई; दौर लगभग 23 मिनट तक चला।
  • नौ ठिकानों पर सटीक रणनीतिक हमले: पाकिस्तान और PoK (Pakistan‑Occupied Kashmir) में स्थित आतंकियों की शिविरों पर ड्रोन, मिसाइल और लॉन्ग‑रेंज हथियारों से प्रहार किया गया।
  • 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए, जबकि भारतीय हानि नहीं हुई (कहो तो ‘नहीं रुश हुई भी एक काँच की पैन’)।
    (indiatimes.com, Deccan Chronicle)

ओम माहलु (जम्मू‑कश्मीर के मुख्यमंत्री) ने भी इस कार्रवाई की सराहना की, बताया कि भारत ने केवल आतंक के ठिकानों को निशाना बनाया, न कि किसी नागरिक या सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर को। वहीं, पाकिस्तान की ओर से LoC पर बाद में अप्रत्याशित फायरिंग हुई जिसमें कुछ नागरिकों की मृत्यु हुई थी।
(indiatimes.com)

राजनीतिक ध्रुवीकरण और आरोप-प्रत्यारोप

इस पूरे मसले में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की रेल चली:

  • कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार Operation Sindoor की कार्ययोजना, हताहतों की संख्या, रणनीतिक त्रुटियाँ आदि छुपा रही है। चिदंबरम ने कहा कि लोग “जानने के अधिकार” के लिए सरकार से सुस्पष्ट जवाब चाहते हैं।
    (Pakistan Today, The Financial Express)
  • BJP ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस पाकिस्तान की पैरवी कर रही है। अमित मलविया ने कहा कि Congress नेताओं की ‘रक्षा वकील’ जैसी भूमिका लोगों को गुमराह कर रही है।
    (Deccan Chronicle, indiatoday.in)
  • कांग्रेस के अन्य नेता जैसे मनिकाम तागोर, इमरान मसूद ने भी सवाल उठाए कि आतंकवादियों की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई, और क्या रणनीतिक बदलाव छुपाने का प्रयास हो रहा है।
    (Pakistan Today, indiatoday.in)

साक्ष्यों का महत्त्व और लोकतांत्रिक अपेक्षाएँ

यह पूरा विवाद भारत की सुरक्षा नीति, पारदर्शिता और राजनीतिक वैचारिक मूल्यों की कसौटी पर खड़ा है। एक ओर सरकार ने स्पष्ट, तकनीकी-प्रमाण आधारित जवाब के साथ कार्रवाई की साजिश और जवाबी ऑपरेशन को उजागर किया। दूसरी ओर, विपक्ष ने यह तर्क दिया कि जनता को पूरी सत्यता बताई जानी चाहिए—जिसमें संभावित गलतियां, हानि और पहचान की प्रक्रिया की जानकारी शामिल हो।

इस बहस से जो निष्कर्ष निकलता है:

  1. साक्ष्यों का महत्व – जैसे वोटर ID, चॉकलेट, FSL रिपोर्टें एवं पहचान।
  2. पारदर्शिता और जवाबदेही – देश की जनता और संसद को पूर्ण जानकारी मिलने की आवश्यकता।
  3. सुरक्षा बनाम खुलापन – चुनौतिपूर्ण संतुलन जहां राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र साथ चलते हों।
  4. भविष्य के लिए दिशा – ऐसी घटनाओं पर ठोस नीति, न केवल प्रतिक्रिया, बल्कि सक्रिय रोकथाम और समुचित समीक्षा।

भावनात्मक प्रभाव और लोकतांत्रिक चेतना

इस पahalगाम आतंकवादी हमले ने न केवल जान ली, बल्कि हमारे सुरक्षा तंत्र, राजनीतिक नेतृत्व और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर भी सवाल खड़े किए। अमित शाह की सशक्त कार्यवाही ने राष्ट्रीय सुरक्षा की भावना को मजबूत किया, साथ ही सार्वजनिक विश्वास को बनाए रखने के लिए चिदंबरम की पारदर्शिता की मांग भी महत्वपूर्ण है।

यह पूरा प्रकरण हमें याद दिलाता है कि जब किसी बड़ी त्रासदी के बाद राजनीतिक स्तर पर बहस होती है, तो सच्चाई, खुद को जवाबदेह ठहराने की क्षमता और लोकतंत्र की जड़ों की मजबूती एक देश को आगे ले जाती है।

 

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