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Supreme Court Flags EC Over Bihar Voter List Revision: Citizenship Checks Under Fire

By Sam
Published On: August 12, 2025
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वीटर सूची पुनरीक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने कही महत्वपूर्ण बात

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में वोटर सूची (Electoral Roll) के विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision—SIR) को लेकर चुनाव आयोग (ECI) की प्रक्रिया पर अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि अगर इस प्रक्रिया में कानून की अवहेलना या गैरकानूनी कार्रवाई सिद्ध हो जाती है, तो पूरी प्रक्रिया—यहाँ तक कि विधानसभा चुनाव से दो माह पहले, यानी सितंबर में—रद्द की जा सकती है (Navbharat Times)।

१. नागरिकता का निर्धारण कौन करता है?

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य सवाल उठाया: क्या नागरिकता का निर्णय आयोग कर सकता है? वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंहवी ने अदालत के समक्ष तर्क रखा कि पांच करोड़ लोगों की नागरिकता पर शक करना असंवैधानिक है—नागरिकता कम‑से‑कम तब तक मान्य मानी जानी चाहिए, जब तक की सरकार (केन्द्रीय गृह मंत्रालय) उसे समाप्त न करे (The Times of India, India Today, Navbharat Times)। उन्होंने यह भी जिक्र किया कि चुनाव आयोग “नागरिकता का पुलिस” नहीं हो सकता है।

जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि नागरिकता का निर्धारण भारत सरकार (गृह मंत्रालय) का क्षेत्र है, लेकिन निर्वाचन पत्रकों (voter list) से गैर‑नागरिकों को निकालना ECI के अधिकार क्षेत्र में आता है (Navbharat Times, India Today, latestlaws.com)।

२. आधार—पहचान है, नागरिकता नहीं

ECI ने सुप्रीम कोर्ट में क्लीयर किया है कि आधार केवल पहचान का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं। कोर्ट ने भी यह माना कि आधार को निर्णायक नागरिकता प्रमाण ना मानना उचित है (www.ndtv.com, The Times of India, India Today, The Economic Times, Business Today)।

इसके साथ ही, ECI ने वोटर ID (EPIC) और राशन कार्ड को भी वैध नागरिकता या आवास का प्रमाण मानने से इनकार किया है—EPIC पुरानी सूची पर आधारित है, और राशन कार्डों की व्यापक त्रुटियाँ (जाली पते, फर्जी दस्तावेज़) उन्हें भरोसेमंद प्रमाण के रूप में मानने में बाधा बनती हैं (latestlaws.com, The Economic Times, Scroll.in, Business Today, India Today)।

३. क्या आधार, EPIC और राशन कार्ड को भी शामिल करें? सुप्रीम कोर्ट की राय

सुप्रीम कोर्ट ने ECI को सुझाव दिया कि न्याय के दृष्टिकोण से, आधार, वोटर ID और राशन कार्ड को पहचान प्रमाणों की सूची में शामिल करना चाहिए—बशर्ते ECI इन दस्तावेज़ों को न स्वीकारे, तो उसे संदर्भ सहित स्पष्ट कारण बताना होगा (The Times of India, The Tribune, Bar and Bench – Indian Legal news, The Economic Times)।

साथ ही, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि SIR एक संवैधानिक दायित्व है जिसे अंजाम दिया जा सकता है, लेकिन समय, तरीका और दस्तावेज़ चयन को न्यायसंगत और पारदर्शी बनाए रखना अनिवार्य है (The Tribune, India Today, The Economic Times)।

४. SIR की समयसीमा और प्रक्रिया पर सवाल

बिहार विधानसभा चुनाव जल्द होने के मद्देनज़र कोर्ट ने SIR की टाइमिंग पर भी आपत्ति जताई—ताकि इस प्रक्रिया को चुनाव के साल में किया जाना क्यों उचित हो, जबकि इसे पहले किया जा सकता था (India Today, The Times of India, The Tribune)।

ECI ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि कोई वोटर बिना नोटिस और सुनवाई के सूची से हटाया नहीं जाएगा—60% लोगों ने पहले ही अपनी पहचान सुनिश्चित कर ली है, और बाकी के लिए दावा‑आपत्ति (claims and objections) प्रक्रिया उपलब्ध होगी (India Today, The Tribune, Business Today, The Economic Times)।

५. राजनीतिक प्रतिक्रिया और नागरिकों की चुनौतियाँ

विपक्ष और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

  • कांग्रेस के अभिषेक सिंहवी ने आरोप लगाया कि ECI इस प्रक्रिया को चुनावी लाभ के लिए—विशेषकर गरीब, प्रवासी और अल्पसंख्यक वोटरों को निशाना बनाए—कर रहा है (The Times of India)।
  • RJD, CPI‑ML जैसी पार्टियों ने प्रक्रिया को लोकतंत्र और संविधान पर हमला बताया। CPI‑ML ने कहा कि एक माह में ६६ लाख वोटर नाम हटाए गए, जिनमें से कई जीवित थे; इसके अलावा ३६ लाख प्रवासी कामगार और ७ लाख EPIC डुप्लिकेट के नाम हटाए गए (The Times of India)।
  • उत्तर प्रदेश में भी BJP इसी तरह की वोटर सूची सफ़ाई की योजना बना रही है, जिससे ECI एक समान पद्धति अपना सकता है (The Times of India)।

अंतरराष्ट्रीय वॉशिंग्टन पोस्ट की रिपोर्ट

एक रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग ने केवल पाँच हफ्तों में ८ करोड़ वोटरों की नागरिकता की जाँच का कार्यभार सौंपा है—जिससे दस्तावेज़ों की कमी और हाशिए पर पड़े समूहों (जैसे प्रवासी, गरीब, मुस्लिम) की बड़ी संख्या बहिष्कृत हो सकती है (The Washington Post)।

६. न्याय, प्रक्रिया और लोकतंत्र

  1. SIR एक संवैधानिक प्रक्रिया है जिसे चुनाव आयोग को समय‑समय पर लागू करना होता है—लेकिन विधिवत, पारदर्शी और न्यायपूर्ण ढंग से (The Times of India, India Today)।
  2. आधार, EPIC और राशन कार्ड पहचान के प्रमाण हो सकते हैं, लेकिन नागरिकता या वोटर‑पात्रता का तय दस्तावेज़ नहीं हैं; यदि इन्हें अस्वीकार किया जाए, तो इसका सार्थक व तथ्यपरक कारण होना चाहिए (www.ndtv.com, The Economic Times, The Times of India, latestlaws.com)।
  3. नागरिकता का निर्धारण गृह मंत्रालय का क्षेत्र, लेकिन चुनाव आयोग को केवल वोटर सूची से नाम हटाने का अधिकार है जब दस्तावेज़ संपूर्ण प्रक्रिया का हिस्सा हों (Navbharat Times, India Today, latestlaws.com)।
  4. ** प्रक्रिया में त्रुटि या कानून का उल्लंघन सिद्ध होने पर**, सुप्रीम कोर्ट ने पूरे SIR को ३० सितंबर से पहले रद्द करने की संभावना जताई है (Navbharat Times)।
  5. डॉक्यूमेंटेशन की कठोरता, समय‑सीमा और लक्षित समूहों का बहिष्कार लोकतांत्रिक अधिकारों और मतदान की सार्वभौमिकता के सिद्धांतों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं (The Washington Post, The Times of India)।

बिहार में वोटर सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) की प्रक्रिया संविधान के अधीन तो है, लेकिन न्याय‑संगत और समावेशी ढंग से होनी चाहिए। आधार, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ पहचान में मदद करते हैं, पर इन्हें नागरिकता प्रमाण के रूप में बाध्यात्मक रूप से स्वीकार करना उचित नहीं—विशेषकर तब, जब इनकी व्यापक स्वीकृति और सत्यापन के साधन मौजूद हों।

सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया में न्याय, समय‑समीक्षा, और न्यायसंगत दस्तावेज़ उपयोग की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। यदि कोई गैरकानूनी तत्व पाया जाता है, तो आयोग की यह प्रक्रिया—even चुनाव के सामने की स्थिति में—रद्द की जा सकती है। लोकतंत्र में वोटिंग का अधिकार सर्वोपरि है, और उसे सुरक्षित रखना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

Sam

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