भारतीय लोकतंत्र की सुनियोजित जांच: मशीन‑रीडेबल मतदाता सूची और पारदर्शिता का आह्वान
भूमिका: लोकतंत्र के स्तंभों पर प्रश्न
चुनाव के पेचीदा समीकरणों और मतदाता सूची (इलेक्टोरल रोल्स) से जुड़ी विवादों ने हाल‑फिलहाल में भारतीय राजनीति में एक आग उगा दी है। मक्कल नीधी मैयम (MNM) के संस्थापक और राज्यसभा सांसद कमल हासन ने न केवल इस स्थिति पर चिंता जताई है, बल्कि उन्होंने चुनाव आयोग से मतदाता सूचियों को मशीन‑रीडेबल (संगणकीय पठनीय) स्वरूप में प्रकाशित करने और स्वतंत्र ऑडिट की अनुमति देने का मजबूत आग्रह किया है। साथ ही, उन्होंने दिल्ली पुलिस द्वारा राहुल गांधी और अन्य I.N.D.I.A. गठबंधन के सांसदों को अस्थायी रूप से हिरासत में लिए जाने की भी कड़े शब्दों में निंदा की है। (www.ndtv.com, NewsDrum)
पारदर्शिता में क्यों है मशीन‑रीडेबल फॉर्मेट महत्वपूर्ण?
कमल हासन ने चुनाव आयोग से पूछा है: “यदि यह डेटा आ आपके पास उपलब्ध है, तो उसे मशीन‑रीडेबल फॉर्मेट में क्यों नहीं प्रकाशित किया जाता जो स्वतंत्र जांच की गुंजाइश दे?” (www.ndtv.com, NewsDrum)
यह सिर्फ एक तकनीकी विरोधाभास ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों में सवाल उठाता है—क्या जनता को यह दावा स्वीकार्य है कि उन्हें केवल “आधिकारिक विश्वास” की बात सुनाई जाए, जबकि स्वतंत्र सत्यापन संभव है?
लोकतंत्र बनाम अधिकार: राहुल गांधी पर निरंकुश कार्रवाई
दिल्ली में संसद से चुनाव आयोग (EC) कार्यालय तक राहुल गांधी, शरद पवार, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे विपक्ष के नेता शांतिपूर्ण मार्च कर रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते में रोकते हुए कुछ समय के लिए हिरासत में ले लिया। इस घटना को कमल हासन ने लोकतंत्र के लिए “जांच मांगने वाले जनता के प्रतिनिधियों को गिरफ्तार करने” जैसा बताया—“यह लोकतंत्र पर हमला है।” (www.ndtv.com, NewsDrum)
यह संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं—यह लोकतंत्र की लड़ाई है
कमल हासन ने इसे राजनीतिक संघर्ष के बजाय “भारत का संघर्ष” बताया और सभी दलों, यहां तक कि NDA से जुड़े राजनीतिक साथियों को भी पारदर्शिता की इस मांग में साथ आने का आह्वान किया। उन्होंने कहा:
“गाँव से शहर, शहर से नगर, हर कोने तक इस मांग को पहुँचाएँ। वोट की रक्षा मत समझो, गणराज्य की रक्षा समझो। हम अपनी लोकतांत्रिक सीमाएँ पार नहीं होने देंगे। उत्तर मांगो—राजनीति के लिए नहीं, देश के भविष्य के लिए।” (www.ndtv.com, NewsDrum)
राहुल गांधी की मांगें — मशीन‑रीडेबल रोल और CCTV फुटेज
राहुल गांधी ने महाराष्ट्र चुनावों में “vote theft” (मत चोरी) की आशंका जताई थी और तुरंत मशीन‑रीडेबल डिजिटल मतदाता सूची और CCTV फुटेज जारी करने की मांग की थी, ताकि प्रत्यक्ष सत्यापन संभव हो सके। (The New Indian Express, ThePrint, The Times of India, The Economic Times)
इसी तरह, संसद में अपनी एक टिप्पणी में उन्होंने चुनाव आयोग से कहा:
“यदि ईसी के पास छिपाने को कुछ नहीं है, तो मशीन‑रीडेबल वोटर रोल, CCTV फुटेज प्रकाशित करके अपनी विश्वसनीयता बनायें। भाग जाने से भरोसा नहीं बनता—सत्य बताने से बनता है।” (The Times of India, The Economic Times)
2018 सुप्रीम कोर्ट का रुख और एसीआई की प्रतिक्रिया
दिलचस्प बात यह है कि 2018 में लोकसभा नेता और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने भी इसी तरह की मांग सुप्रीम कोर्ट में की थी, जहां फॉर्मेट को लेकर यह मामला न्यायपालिका तक गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया:
“चुनावी नियमों में केवल ‘text mode’—जिसे इमेज PDF रूप में भी देखा जा सकता है—की बात है, न कि ‘searchable PDF’ या मशीन‑रीडेबल फॉर्मेट।”
“यदि कोई इसे खोजने योग्य बनाना चाहता है, तो वह स्वयं अपनी तरफ़ से कर सकता है।” (Deccan Chronicle, The Times of India)
चुनाव आयोग ने भी इस निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि राहुल गांधी की मांग “नई नहीं है, बल्कि आठ वर्षों से कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा रही है”—और इसे “वर्तमान कानूनी ढांचे में स्वीकार्य नहीं” बताया। (Deccan Chronicle, The Times of India)
EC और राहुल गांधी: तकरार और जवाब
चुनाव आयोग ने दो पहलुओं पर जोर दिया:
- वोटर रोल उपलब्ध कराना मुफ्त है, और उन्हें विभिन्न चरणों में सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों—जिनमें कांग्रेस भी शामिल है—के साथ साझा किया जाता रहा है। (The Times of India)
- मशीन‑रीडेबल स्वरूप में रोल उपलब्ध कराना संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है, जैसा सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है। (The Times of India, Deccan Chronicle)
इसके अलावा, कर्नाटक के चुनाव अधिकारी ने राहुल गांधी से लिखा कि यदि वे वोटर सूची में हटाए गए या जोड़े गए नामों की सूची सत्यापित रूप से सौंपते हैं (“oath” या घोषणा सहित), तो आयोग कार्रवाई करेगा। (The Economic Times, The New Indian Express)
बिहार उत्परिवर्तन विरोध मार्च: कमीशन की विशेष समीक्षा
बीते सोमवार (11 अगस्त 2025) को, विपक्ष के कई नेता—राहुल गांधी, शरद पवार, मल्लिकार्जुन खड़गे—ने बिहार में चल रही Special Intensive Revision (SIR) के खिलाफ संसद से ECI कार्यालय तक विरोध मार्च निकाला। उनका आरोप था कि यह पुनरीक्षण गरीब, अल्पसंख्यक और असमर्थ वर्गों को हटाने की साजिश हो सकता है। पुलिस ने उन्हें midway रोककर हिरासत में लिया। (AP News, Reuters)
अभिनेता विजय (TVK अध्यक्ष) ने भी राहुल गांधी की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की, और कहा कि “स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव ही लोकतंत्र की रीढ़ हैं।” (The Times of India)
पारदर्शिता में बाधाएँ और लोकतंत्र का भविष्य
- मशीन‑रीडेबल मतदाता सूची—भले ही तकनीकी रूप से न्यायपालिका ने इसे आवश्यक नहीं माना हो, लोकतांत्रिक विश्वास के लिए यह पारदर्शिता जरूरी स्पंदन है।
- विपक्ष का आरोप—मतदाता सूची में हेर‑फेर, बिहार में SIR, और महाराष्ट्र चुनावों में बढ़ा वोटर संख्या—लोकतंत्र की नैतिकता पर सवाल उठाते हैं।
- चुनाव आयोग का रुख—कानूनी और पूर्व निर्णयों पर आधारित, तथ्यों को साझा करने में सेक्सनल रूप से पारदर्शिता का दावा करता है, लेकिन डिजिटल रूपांतरण से बचता है।
- जन प्रतिनिधियों की गिरफ्तारी—लोकतंत्र की आवाज़ों को दबाना स्तंभों को हिला सकता है, जब वे सिर्फ जवाब की मांग कर रहे हों।
कमल हासन की मंशा यथार्थ है: “वोट की रक्षा गणराज्य की रक्षा”। यह मांग मात्र राजनीतिक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक भविष्य की सुरक्षा की माँग है। चाहे सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले हों, कानूनी बाध्यताएँ, या चुनाव आयोग की प्रतिक्रियाएँ—लोकतंत्र में सबसे छोटा शोर भी महत्वपूर्ण होता है। एक दिन, जब ये छोटी आवाज़ें मिलकर लाखों उठेंगी, लोकतंत्र की छवि तभी पूरी होगी।
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अंत में, यह लेख़ लोकतंत्र की सीमाओं पर सवाल उठाने, जवाबदारी माँगने, और पारदर्शिता का आह्वान करने वाला एक निषंवल दृष्टिकोण है—जिसे चुनावी प्रक्रिया की मजबूती की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखना चाहिए।
अगर आपको किसी विशिष्ट हिस्से को और विस्तार देना हो, या लेख़ को किसी और स्वर में देखना चाहें—तो कृपया बताइए, मैं खुशी से संशोधन करूँगा।